शब्द मौन होते है!
वे कहां कुछ कहते हैबस मौन होते हैं ।
शब्द !
गूंगे होते है;
वे चहरे के पीछे का वतन होते हैं
मन के ऊहापोह का जतन होते है
वे भावुकता की पतंग होते है
वे प्रेरित होते है,
वे कहाँ कुछ कहते है
बस॰॰॰ मूक होते है
शब्द मौन होते हैं
शब्द!
बहरे होते है;
क्रोध में प्रस्फुटित आग होते है
मान में बडे पाषाढ होते है
छल में मानो इन्द्रजाल होते है
लोभ में मिष्ट-काल होते है
वे ऐसे में कहां किसी की बात को,
कान देते है
बस स्वयं जानकार होते है
शब्द बे-कान होते है...
शब्द लगडे होते है
कई बार लड-खडा जाते है
बिना जमीन आसमान होते है
ऽनेक बार साहस हाथ लेते है
लगडे होकर भी उचकते है-उछलते है
कि- पैर फिसला
और बे-धडाम होते है
शब्द बे-टांग होते है
शब्द अंधे होते है
वे दूर का कहां देख पाते है
न ही वे चश्मा पहनते है
चलते जाते है- चलते जाते है
बस ...
फिर महाभारत जैसे परिणाम होते है
और मावस-रात होते है
शब्द फूटी-आंख होते है...
मैं शब्द हूं
खुद बस मौन हूं
हां अंतर इतना है कि-
किसी के सूर तो किसी के क्रूर हूं
मैं सबकी पहुंच से दूर हूं
सब बोलते -दहाडते है
और
मैं मौन हूं