अद्याष्टक-स्तोत्रम्-अर्थ सहित
[ गुणनन्दिकृतम्]
(छंद-1)अद्य मे सफलं जन्म नेत्रे च सफले मम।
त्वामद्राक्षं यतो देव हेतुमक्षयसम्पदः ॥1॥
(भावानुवाद)
आज जन्म मम सफल हुआ प्रभु
अक्षय अतुलित निधि दातार !
नेत्र सफल हो गये दर्शसे
पाया है आनन्द अपार !!
अर्थ- हे देव ! आज मैंने अक्षय सम्पत्ति के हेतुभूत आपके दर्शन किये। इससे मेरा जन्म सफल हो गया और दोनों नेत्र सफल हो गये ॥1॥
(छंद-2)
अद्य संसार-गम्भीर-पारावारः सुदुस्तरः।
सुतरोऽयं क्षणेनैव जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥2॥
(भावानुवाद)
आज पंच परिवर्तनमय वह-
अति दुस्तर भव पारावार' !
सुतर हुआ दर्शन से तेरें,
भटका हूं जिस में बहुबार !!
अर्थ- हे जिनेन्द्र ! आज आपका दर्शन करने से तरने के लिए अत्यन्त कठिन यह गम्भीर संसाररूपी समुद्र मेरे लिए क्षणमात्र में सुतर अर्थात् सुगमता से पार करने योग्य हो गया ॥2॥
(छंद-3)
अद्य मे क्षालितं गात्रं नेत्रे च विमले कृते।
स्नातोऽहं धर्म-तीर्थेषु जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥3॥
(भावानुवाद)
आज नहाया धर्म तीर्थमें
तेरा दर्शन पा साकार !
गात्र पवित्र हुआ नयनों में,
छाया निर्मल तेज अपार !!
अर्थ- हे जिनेन्द्र ! आज आपका दर्शन करने से मेरा शरीर धुल गया, नेत्र निर्मल हो गये और मैंने धर्मतीर्थों में स्नान कर लिया ॥3॥
(छंद-4)
अद्य मे सफलं जन्म प्रशस्तं सर्वमंगलम्।
संसारार्णव-तीर्णोऽहं जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥4॥
(भावानुवाद)
आज हुआ यह जन्म सार्थक
सकल मंगलों का आधार !
तेरे दर्शन के प्रभाव से,
पहुँचा मैं जग के उस पार !!
अर्थ- हे जिनेन्द्र ! आज आपका दर्शन करने से मेरा जन्म सफल हो गया, मुझे प्रशस्त सर्व मंगलों की प्राप्ति हो गयी और मैं संसाररूपी समुद्र से तैरकर पार हो गया ॥4॥
(छंद-5)
अद्य कर्माष्टक-ज्वालं विधूतं सकषायकम्।
दुर्गतेर्विनिवृत्तोऽहं जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥5॥
(भावानुवाद)
आज कषाय-सहित कर्माष्टक
ज्वालाएँ विघटी दुखकार !
दुर्गति से निर्वृत हुआ मैं
तेरे दर्शन के आधार !!
अर्थ- हे जिनेन्द्र ! आज आपका दर्शन करने से मैंने कषाय के साथ आठ कर्मों को जलाकर दूर कर दिया और मैं दुर्गति से पार हो गया ॥5॥
(छंद-6)
अद्य सौम्या ग्रहाः सर्वे शुभाश्चैकादश-स्थिताः।
नष्टानि विघ्न-जालानि जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥6॥
(भावानुवाद)
आज हुए हैं सौम्य सभी ग्रह,
शान्त हुए मन के संताप !
विघ्न-जाल नश गये अचानक,
तेरे दर्शन के सुप्रताप !!
अर्थ- हे जिनेन्द्र ! आज आपका दर्शन करने से मेरे एकादश स्थान में स्थित सब ग्रह सौम्य और शुभ हो गये तथा विघ्नजाल नष्ट हो गये ॥6॥
( छंद-7)
अद्य नष्टो महाबन्धः कर्मणां दुःखदायकः।
सुख-सङ्गं समापन्नो जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥7॥
(भावानुवाद)
आज महाबन्धन कर्मों का
बन्द हुआ, दुख का दातार !
सौख्य समागम मिला जिनेश्वर !
तब दर्शन से अपरम्पार !!
अर्थ- हे जिनेन्द्र ! आज आपका दर्शन करने से दुःख देनेवाला कर्मों का महाबन्ध नष्ट हो गया और मैं सुखकर संगति को प्राप्त हो गया ॥7॥
(छंद-8)
अद्य कर्माष्टकं नष्टं दुःखोत्पादन-कारकम्।
सुखाम्भोधि-निमग्नोऽहं जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥8॥
(भावानुवाद)
आज हुआ है ज्ञान-भानु का,
उदय देह-मन्दिर में सार ।
तब दर्शन से हे जिनेन्द्रवर !
मिथ्या तम का नाशनहार !!
अर्थ- हे जिनेन्द्र ! आज आपका दर्शन करने से दुःख को उत्पन्न करनेवाले आठ कर्म नष्ट हो गये तथा मैं सुखसागर में निमग्न हो गया ॥8॥
(छंद-9)
अद्य मिथ्यान्धकारस्य हन्ता ज्ञान-दिवाकरः।
उदितो मच्छरीरेऽस्मिन् जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥9॥
(भावानुवाद)
आज हुआ हूं पुण्यवान् मैं,
दूर हुए सब पापाचार |
मान्य बना हूं जग में स्वामिन् !
तेरा दर्शन पा अविकार !!
अर्थ- हे जिनेन्द्र ! आज आपका दर्शन करने से मेरे शरीर में मिथ्यात्वरूप अन्धकार का नाश करनेवाला ज्ञानरूपी सूर्य उदित हुआ है ॥9॥
(छंद-10)
अद्याहं सुकृतीभूतो निर्धूताशेषकल्मषः।
भुवन-त्रय-पूज्योऽहं जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥10॥
(भावानुवाद)
आज हुई जिन दर्शन महिमा,
अवगत मुझ को हे भगवान् !
सत्पथ साफ दिखाई पड़ता,
खड़ा सामने है कल्याण !!
अर्थ- हे जिनेन्द्र ! आज आपका दर्शन करने से समस्त पाप-मैल को धोकर मैं पुण्यशाली और तीन लोक में पूज्य हो गया ॥10॥
(छंद-11)
अद्याष्टकं पठेद्यस्तु गुणानन्दित-मानसः।
तस्य सर्वार्थसंसिद्धिर्जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥11॥
अर्थ- हे जिनेन्द्र ! आपका दर्शन करते समय जो आपके गुणों में आनन्दपूर्वक अपने मन को लगाकर इस अद्याष्टक स्तोत्र को पढ़ता है, उसे आपका दर्शन करने मात्र से सब अर्थों में सिद्धि या सर्वार्थसिद्धि प्राप्त हो जाती है ॥11॥
इत्यलम्
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