जाते हुए दो शत्रुओं में प्रेम रखना,
रोते हुए दो व्यक्तियों में नेह करना
डोर से दो दूरियों को किस तरह है बांधनाऔर दूसरों के पिघलते आसुओं को किस तरह से बाॅटना -
वह बंधन मुझे बतला गया....
अरे! उस सूत्र के हर एक मोती क्रमबद्ध को दिखला रहे ,
क्या खूब यह मर्याद बंधन स्वाधीनता सिकला रहे ,
जानते थे हम तुम्हें ! कि बंधन ही कहोगे तुम इसे
फिर सोचकर देखो जरा स्वाधीनता कहते किसे?
वह बंधन मुझे बतला गया....
बतला गया वह अभी हमको सब बंधनों से छूटना ,
न किसी से रूठना ,
बस छूटना,बस छूटना,बस छूटना
वह बंधन मुझे बतला गया....
-आप्त जैन
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