जैनी भये जैनी के निंदक
आचार्य कुन्दकुन्द देव का नाम आज सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज में अग्रणीय है। गंभीरता से विचार किया जायें तो हम पायेंगे कि- वास्तव में आचार्य कुन्दकुन्द देव को संरक्षणता की आवश्यकता कदापि नहीं हैं। लेकिन हाँ यदि दिगम्बर जैन समाज को अपना मूल आधार बनाये रखने के लिए हमें निःसंदेह कुन्दकुन्द आचार्य देव की महती आवश्यकता है। आचार्य कुन्दकुन्द कितने महान आचार्य थे - उनकी प्रतिभा पर दिगम्बर जैन समाज को कोई संदेह नहीं है ।"मंगंलम् कुन्दकुन्दार्यो" -गणधरदेव के बाद उनका नाम बडे ही सम्मान से लिया जाता है।
किंतु वर्तमान परिस्थिति में कुछ विद्वान जैनधर्म का इतना सीधा- सच्चा स्वच्छ मार्ग होने पर भी कुछ (तथाकथित) लोग जैन धर्म का मार्ग मलिन करना चाहते है । यदि हम इतिहास में दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि - आचार्य कुन्दकुन्द देव ने किन - किन विषम परिस्थितियों में इस कालजयी कृति की रचना कर जैनधर्म का मूल अध्यात्म सुरक्षित रखा परंतु बत॰॰॰
कैसे थे वे लोग जो टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर भी सीधा चला करते थे। गजब की बात तो यह है कि लोग आज सीधे- साधे रास्ते पर भी तेरा- मेडा चला करते हैं ।
• यद्यपि NO REPLY IS BEST REPLY लेकिन "मौनं सम्मति लक्षणम्" इसके लिए ही मैं यहाँ कुछ कहता हूँ वरना अनागत पीढी पूछेंगी; कि - जब ये हुआ तो आप खामोश क्यों थे ???
खैर;
मुझे प्रतीत होता है कि- सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज को अपना अस्तित्वबोध कराने के लिए या हम भी कोई चीज़ है तथा सम्पूर्ण आत्मलाभार्थियों को अपने ऊपर ध्यान केंद्रित करने की इच्छा से यह बेबुनियात पोपगेंडा खडा किया है।
तथोक्तं-
घटं भिन्द्यात् पटं छिन्द्यात् कुर्याद्रासभरोहणम् |
येन केन प्रकारेण प्रसिद्ध: पुरुषो भवेत् ||
अर्थ- घड़े फोड़कर, कपड़े फाड़कर या गधे के ऊपर चढ़कर. कुछ लोग किसी भी तरह, कुछ भी करके लोकप्रिय होना चाहते हैं ||
परीक्षामुख में स्पष्ट कहा है कि - "...नोदाहरणम्" उदाहरण वादविवाद का विषय नहीं होता तभी तो उसे विजिगीषु कथा से वंचित रखा है ।
दूसरी यह बात भी तो है कि- उदाहरण (दृष्टांत )एक देश होते है ।
यदि दृष्टांत को सर्वदेश माना जाएगा तो वह दृष्टांत न होकर सिद्धांत ही बन जायेंगा।
यद्यपि मैं क्या कोई भी दृष्टांत की महती उपयोगिता का अपलाप नहीं कर सकता। यदि दृष्टांत की महती उपयोगिता जाननी होवें तो प्रो॰ वीरसागर जी दिल्ली का "दृष्टांत स्फुटायते मति: " लेख देखना ही पर्याप्त है।
लेकिन दृष्टांत विवाद का विषय नहीं हो सकता क्योंकि वह प्रयोजन नहीं होता और सही दृष्टांतों को भी गलत समझकर अप्रमाणिक घोषित करना एक अपराध है।
एक बात यह भी है कि- "नयविभागानभिज्ञोऽसि" अल्पज्ञान से अंध हुए ये लोग मदोन्मत हाथी की तरह कुछ "मैं सब कुछ जानता हूँ "- मैं सब कुछ जानता हूँ-इस अभिमान में दग्ध होकर सर्वमान्य दिगम्बर आचार्य कुन्दकुन्द देव के ऊपर ही अंगुली उठाते हैं।
श्री मद् राजचंद्र जी ने सम्यक्त्व से भ्रष्ट होने के तीन कारण बताये
1) गुरू का गुरू बनना चाहता है
2) तीव्र विषयाशक्ति
3) मैं बहुत जानता हूँ- लेकिन आपमें अनुरंजित पहला और तीसरे कारण से यह जान पडता है कि- आप अभी सम्यक्त्व से योजनों दूर है।
कुन्दकुन्द आचार्य देव ने तो पांचवी गाथा में हमें जागरूक किया था कि - "छलं न घेतव्वम्" और आप वही कर बैठे सो जैसे पिता जिस कार्य को मना करें और पुत्र वहीं करें सो वह दण्डयोग्य है सो आपने भी वही कार्य कर सम्पूर्ण परंपरा को कलंकित करने का प्रयास किया है।
यह समयसार तो ऐसी संजीवनी है जिसने कई लोगों के जीवन में क्रांति लाई; कईयों का तो इसने सम्पूर्ण जीवन ही परिवर्तित कर दिया ।
• आ॰ शांति सागर जी महाराज कहा करते थे कि-
समयसार पड़े जो कोई, ताही तनाव कभी नहीं होई।
और हा॰मा॰॰धिक्॰॰॰ खेद(बत) है कि - आज आपने समयसार को ही एक तनाव का विषय बना दिया।
बलिहारी पंचम काल की इसमें जो हो सो कम है ...
कविराज द्यानतराय ने कहा ही -
जैनी भये जैनी के निंदक, पंचम काल जोरा ।
द्यानत सब देखकै चुप रहिए, जग में जीवन थोडा।।
इत्यलम्
- आप्त जैन शास्त्री
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