कुन्दकुन्दाचार्य देव समयसार की पांचवी गाथा में कहते है कि-
मैं शब्द ब्रह्म की उपासना से जन्मा निज वैभव को दिखलाऊगा। वह निज वैभव अनंतगुणशक्तिमय है।• जब अमृत की एक बूंद ही अमर कर सकती है तो फिर अमृत का घड़ा क्यों पीना ठीक उसी प्रकार जब आत्मा की अपनी शक्तियों में से एक रत्न से ही हम निहाल हो सकते है तब रत्नाकर की तो क्या बात करना।
• ज्ञेयलुब्धता और व्यग्रता के चक्कर में हम रत्नाकर को भूल बैठे हैं ।
चिदानंद आनंदमय, सकति अनंत अपार |
अपनो पद ज्ञाता लखे जामें नहिं अवतार ।।
• अनंतधर्मणस्तत्त्वं पश्यंती प्रत्यगात्मनः
• विषय – आत्मा के ज्ञानमात्र में अनंत शक्तियां उछलती (परिणमती) है |
१- अनंत धर्मो के समुदाय रूप परिणमित एक
ज्ञप्ति मात्र भाव वह आत्मा है |
• ज्ञान मात्र = ज्ञान की पर्याय ज्ञान अकेला नहीं वरन अभेद अनंत गुणात्मक आत्मा की पर्याय समझना |- पृ-३२
१- एक-२ शक्ति में अनंत सामर्थ्य |
• अंश में अंशी का पूर्ण अनुभव आया है
• गुण अनंत के रस सबै, अनुभव रस के मांहि |
यातें अनुभव सारिखो, और दूसरों नाहिं ||१५३ ज्ञान दर्पण।।
• आत्मख्याति 👇
परस्परव्यतिरिक्तानंतधर्मसमुदायपरिणतैकज्ञप्तिमात्रभावरूपेण स्वयमेव भवनात् । अत एवास्य ज्ञानमात्रैकभावांत:पातिन्योऽनंता: शक्तयः उत्प्लवंते।
उस ज्ञान के साथ अविनाभावीरूप से रहनेवाला अनन्तधर्मों के समुदायरूप जो भी लक्षित होता है, पहिचाना जाता है; वह सब वास्तविक आत्मा है।
परस्पर भिन्न अनंत धर्मों के समुदायरूप से परिणत एक ज्ञप्तिमात्रभावरूप स्वयं होने से यह भगवान आत्मा ज्ञानमात्रभावरूप है।
यही कारण है कि उसमें ज्ञानमात्रभाव की अन्तः - पातिनी अनंत शक्तियाँ उछलती हैं ।
गुण एक-एक जाकै, परजै अनंत करे; परजै मैं नंत नृत्य, नाना विसतय है । नृत्य मैं अनंत थट, थट मैं अनंत कला; कला मैं अखंडित, अनंत रूप धर्यो है ॥ रूप मैं अनंत सत, सत्ता में अनंत भाव; भाव को लखावहु, अनंत रस भय है । रस के स्वभाव मैं, प्रभाव है अनंत 'दीप'; सहज अनंत यौं, अनंत लगि कर्यौ है ॥
इस सम्पूर्ण विषय को निम्न अधिकारों के माध्यम सुस्पष्ट किया जा सकता है से
● गुणों की पर्यायें
•पर्यायों के नृत्य
•नृत्यों के घाट
•घाटों की कलाएँ
• कलाओं के रूप
• रूपों के सत्
• सत्ताओं के भाव
•भावों के रस
• रसों के प्रभाव
अनन्तता की यह उत्तरोत्तर अनन्त यात्रा हम आप के जीवन की दरिद्रता को दूर करे इस मंगल कामना के साथ विराम लेता हूँ. विशेष आगले अंक में...
• गुण की विशेषता 👇
एक गुण में सब गुणों का रूप होता है। वस्तु में अनन्त गुण हैं और प्रत्येक गुण में सब गुणों का रूप होता है, क्योंकि सत्तागुण है तो सब गुण है। अतः सत्ता के द्वारा सब गुणों की सिद्धि हुई। सूक्ष्मगुण है तो सब गुण सूक्ष्म हैं । वस्तुत्वगुण है तो सब गुण सामान्य विशेष रूप है । द्रव्यत्वगुण है तो वह द्रव्य को द्रवित करता है, व्याप्त करता है । अगुरुलघुत्वगुण है तो सब गुण अगुरुलघुत्व हैं | अबाधित गुण है तो सब गुण अबाधित हैं। अमूर्तिकगुण है तो सब गुण अमूर्तिक हैं ।
इसप्रकार प्रत्येक गुण सब गुणों में है, और सबकी सिद्धि का कारण है । प्रत्येक गुण में द्रव्य गुण पर्याय तीनों सिद्ध करना चाहिए। जैसे एक ज्ञानगुण है, उसका ज्ञानरूप 'द्रव्य' है, उसका लक्षण 'गुण' है। उसकी परिणति 'पर्याय' है और प्राकृति 'व्यञ्जनपर्याय' है ।
• शक्तियों में अनंतता
1. अनंतधर्मत्वशक्ति:👉 विलक्षणानंतस्वभावभावितैकभावलक्षणा अनंतधर्मत्वशक्ति:।
परस्पर भिन्न लक्षणोंवाले अनंत स्वभावों से भावित - ऐसा एक भाव है लक्षण जिसका ऐसी अनंतधर्मत्वशक्ति है ।
2.जीवत्व शक्ति 👉 इससे यह आत्मा अनाद्यनंत है और इससे अनन्त गुण को चैतन्यमात्र युक्त रखने की सामर्थ्य वाला है ।
3. चिति-दृशि शक्ति 👉चितिशक्ति को पृथक् कहने का कारण यह है कि चेतनशक्ति अपनी अनन्त प्रकाशरूप महिमा को धारण करती है यही दिखाने के लिए उसे पृथक् कहा है ।
[ ] चिद्विलासाभिगत वर्णित आत्मा का वैभव
• संज्ञा,संख्या,लक्षण और प्रयोजन की अपेक्षा अनंत गुण का वर्णन
• सभी गुण अपनी अपेक्षा द्रव्य क्षेत्र काल भाव- स्वचतुष्टयात्मक है।
• चार शंका के समाधान से स्वरूप समझा जाता है-
आश्रय? नित्यानित्य
एकानेक? अस्तिनास्ति? ?
• गुण विशेष को समझने के लिए सप्त प्रकार
(क्योंकि विशेषज्ञान से विशेषसुख प्राप्त होता है )
( १ ) नाम ( २ ) लक्षण (३) क्षेत्र (४) काल ( ५ ) संख्या ( ६ ) स्थानस्वरूप तथा ( ७ ) फल ।
• अनादि अनन्त, अनादि-सान्त, सादि-सान्त और सादि अनंत- ये चार भङ्ग सब गुणों में सिद्ध होते हैं।
१. वस्तु की अपेक्षा ज्ञान अनादि अनन्त है, २. द्रव्य की अपेक्षा अनादि और पर्याय को अपेक्षा सान्त है, अतः ज्ञान अनादि सांत है, ३. पर्याय की अपेक्षा ज्ञान सादि-सान्त है तथा ४. पर्याय की अपेक्षा सादि और द्रव्य की अपेक्षा अनन्त है, अतः ज्ञान सादि अनन्त भी है ।
• उपचार से प्रत्येक गुण के छत्तीस भेद
सामान्यभेद 👉 द्रव्य; गुण; पर्याय (3*3)
विशेषभेद👉स्वजाति, विजाति, स्वजाति-विजाति(मिश्र)
सामान्य*(9*4=36)
• प्रत्येक शक्ति में षट् कारक
• प्रत्येक गुण में स्व और पर(अन्य गुण )की अपेक्षा सप्तभंगी घटित होती है । ऐसे अनंत गुणों में अनंत भंगी लागू होती है ।
• द्रव्य गुण पर्याय में कारण कार्यपना (कौन किसका कारण है?) (जिन्होने कारण कार्य को जान लिया उन्होंने सब जान लिया)
• पूज्य गुरुदेव श्री
प्रत्येक शक्ति में लागू होनेवाले 23 बोल
इस समयसार परमागम के परिशिष्ट में समागत 47 शक्तियों पर पूज्य गुरुदेव श्री द्वारा लिखायी गयी नोंध इस प्रकार है ।
1. क्रमरूप और अक्रमरूप अनन्त धर्मसमूह जो कुछ जितना लक्षित होता है,
वह सब ही वास्तव में एक आत्मा है ।
2.ज्ञानमात्र एक भाव की अन्तः पातिनी अनन्त शक्तियाँ उछलती हैं ।
3. क्रमवर्तीरूप और अक्रमवर्तीरूप वर्तन जिनका लक्षण है ।
4. एक - एक शक्ति अनन्त में व्यापक है ।
5. एक शक्ति अनन्त को निमित्त है ।
6. एक शक्ति द्रव्य-गुण- पर्याय में व्यापती है ।
7. एक शक्ति में ध्रुव उपादान, क्षणिक उपादान है।
8. एक-एक शक्ति में व्यवहार का अभाव है।
9. यही अनेकान्त है, स्याद्वाद है।
10. शक्ति पारिणामिकभाव से है ।
11.कर्ता आदि छह कारक अभिन्न हैं और निरपेक्ष है।
12. प्रत्येक शक्ति में अनन्त का रूप है ।
13. जन्मक्षण, वही नाशक्षण ।
14. उत्पाद, उत्पाद के कारण से है ।
15. काललब्धि है ।
16. अपने-अपने अवसर में होता है
17. निश्चय - व्यवहार है ।
18.शक्ति और शक्तिवान का भेद भी दृष्टि का विषय नहीं है।
19.क्रमवर्ती ज्ञानपर्याय, वह पर को जानती है, यह भी व्यवहार है ।
20. जाननेवाला, जाननेवाले का है, ऐसे स्वस्वामी अंश से क्या साध्य है ।
21. राग को उपादेय माने, वह आत्मा का हेय मानता है; - आत्मा को उपादेय माने, वह राग को हेय मानता है ।
22.प्रत्येक शक्ति में अकार्य-कारण का रूप है ।
23. प्रत्येक शक्ति में त्याग-उपादानशून्यत्व है ।
👉परमागम श्री समयसारजी की ४७ शक्तियों के उपरान्त शास्त्र समुद्र का मन्थन करके पूज्य गुरुदेवश्री ने खोज निकाली हुई कितनी ही शक्तियाँ...और भी है।
• गुरूदेव श्री द्रव्य में कितनी शक्तियाँ हैं इसका भाव भासन कराने के लिए कहते थे-
एक द्रव्य में शक्तियाँ
जीव अनंत
पुद्गल अनंतानंत
तीन काल के समय उससे अनंतानंत
आकाश के प्रदेश उससे अनंतानंत
उससे अनंतगुणे जीव द्रव्य में अक्रम गुण/शक्ति
• सामान्य फल- सुख या आनन्द अनन्त गुणों की उस शुद्धता का फल सुख है।
• लाभ-
1} चिदानंद आनंदमय, सकति अनंत अपार ।
अपनो पद जाता लखे जामे नहि अवतार || चिद्विलास
3} विशेषज्ञान से विशेषसुख प्राप्त होता है।
- चिद्विलास
2} गुण अनंत के रस सबै, अनुभव रस के माहि
यातै अनुभव सारिखो, और दूसरों नाहि || १५३||
-ज्ञान दर्पण
4] सुख या आनन्द अनन्त गुणों की उस शुद्धता का फल सुख है।
5) अनंत गुणों को जानने से दीनता एवं हीनता का भाव मिटता है।
6} परसन्मुखता मिटती है एवं स्वसन्मुखता होती है।
7] अगाध ज्ञान स्वभाव की विशेष महिमा आती है।
8} अनंत उछलती हुई शक्ति को जानकार तृप्ति का भाव जागृत होता है।
No comments:
Post a Comment